लच्छू के लक्ष्य

“लच्छू ए लच्छू,अब उठ जा रे ” 

हे अल्लाह ये अम्मी भी ना हद तंग करती हैं । नींद काहे की आई मेरे को , तब से जाग ही तो रहा हूँ । लच्छे खाँ तू किस चक्कर में पड़ रहा है रे ? काश सब पहले जैसा होता । मेरे को तो वो दिन याद आता है जब मैं पहली बार साब को गोन्दलपुर लेकर गया था । लौटते ही तारीफ की थी मेरी , मेरे सेठ से, की ड्रेविंग अच्छी कर लेता है छोरा । एक आध साल पहले ही तो मिले हैं साब मेरे से, मगर परिवार जैसे रखते हैं । पूरा गाँव भेला जानता है की साब लच्छू पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं और साब के भाई बहन भी मेरे सिवा किसी और ड्रेवर के साथ शहर नहीं जाते ।

अरे यार! ये गोपालदास फोन लगाए जा रहा है । ” हल्लो हाँ भैया! जा रहा हूँ साब को लेने। हाँ कर लूँगा बात तुम्हाई । बोली तो है मैंने तुमको। अब फोन रखो ।”

घड़ी इतनी धीमी काये को चल रही , सात ही बजे हैं । साब जब नए थे, मेरे देरी से आने पर खतरनाक डाँटते थे।दो तीन महीने हुए डाँट नहीं खाई ।हाँ तीन महीने ही तो हुए हैं साब का स्वभाव बदले। पहले साब रास्ते भर मेरी बातें सुनते थे मगर अब , ना सोते हुए भी नहीं सुनते। मेरे को नहीं कहते टेंशन अपनी , पर बात करते सुना है मैंने , अपनी मम्मीजी को कह रहे थे की टेबिल ( TA BILL) का टेंशन है थोड़ा।

न जाने क्या चीज़ है ये टेबिल , जिसकी वजह से ये दिन आया है । लप्पू की सालगिरह और ये गोपालदास।साब ने ही आदत बिगाड़ी थी मेरी । मैं ही मूरख था , सपने देखने लगा था । मेरेको थोड़े ही पता था सपने महंगे होते हैं । महंगे तो वो जूते थे जो साब मेरे लिए शहर से लाये थे। गाँव के सारे कहते- ” वाह फर्स्ट क्लास जूते हैं।”अम्मी ने तो ये तक कह दिया की जूते मेरे मुँह से ज्यादा सुन्दर हैं। चार बार कह चुका था साब से, जूतों के लिए । एक बार तो पैसे दे दिए थे साब ने , कहा खुद ही खरीद लेना। पैसों से तो मैंने दो बूसल्ट खरीद ली थी, मेरी भी ज़िद्द थी की साब के पसंद के जूते चाहिए बस ।

 साब की कोई गर्लफ्रेंड नहीं है पर राबिया की सारी बातें बताईं हैं साब को मैंने । साब कहते हैं – राबिया साथ नहीं देगी ज्यादा दिन तक, परिवार ही साथ देगा कब्र तक। उस रोज लप्पू और जिन्नाह के लिए पेस्ट्री खरीदकर दी थी साब ने । ईना तो ख़ुशी के मारे फूले नहीं समा रही थी की मैंने बच्चों के लिए मिठाई लाई है । उसी दिन मेरेको मालूम चला की ईना बहुत ज्यादा सुन्दर है, शायद राबिया से कई ज्यादा क्योंकि ईना के दिल की ख़ुशी उसके चेहरे पे दिखाई देती थी ।

लप्पू और जिन्नाह को साब के कहने पे बड़े स्कूल में डाल दिया है। बस दस दिन बाकी हैं लप्पू की सालगिरह के। काहे को मैंने उससे वादा कर लिया पाल्टी का । अगर साब मान जाते गोपालदास का काम करने के लिए तो वो मेरेको पाँच हज़ार देता। सालगिरह एक नंबर मनाता लप्पू की पूरे गाँव में ।

पैसा , टेबिल , नौकरी , ड्रेवरी , परिवार , इज्जत… हे अल्लाह क्या करूँ मैं ?

“ए ईना ये जिन्नाह क्यों रो रहा है।”

” अरे उसके प्यारे कीड़े से तितली निकल रही है , तो रो रहा है कि कीड़ा मर जायेगा ।”

“चुप करा यार बेंडे को।”

 आह तितली … आज तो जिन्नाह ने सबक सिखा दिया अब्बू को।

“हल्लो भैया, न हो पायेगा काम हमसे।आप कहीं और देख लो।अब फ़ोन रखो।”

अब जाकर मिला है सुकून। लप्पू की सालगिरह अगले साल मना लेंगे धूम धाम से।चलूँ आठ बज गए।साब को भी सुनाऊंगा किस्सा तितली का।

One thought on “लच्छू के लक्ष्य

  1. As always it’s just wow.. Can imagine everything infront if eyes as the story progress… Much love and appreciation to writer❤

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