चाँद और प्यार 

‘प्यार चाँद की तरह होता है, जब बढ़ता नहीं है, तब घटने लगता है’
गाड़ी का शीशा नीचे करते हुए स्मिता बोली “देखो! वो चाँद है क्या?वाह! इतना बड़ा है और इतना सुंदर। आज लिखो न चाँद पर कुछ!” 

बड़े से चाँद की एक-दो कहानियाँ स्मिता को सुनाने के बाद मैंने लालघाटी में चढ़ते चाँद को देखा। वाकई में बहुत बड़ा और सुंदर था – बिलकुल प्यार की तरह! 

मेरे प्यार की कहानी का शीर्षक सोचकर हंसी आ गई – प्यार, चाँद की तरह होता है, जब बढ़ता नहीं है, तब घटने लगता है। खैर, आज शाम क्षितिज की सीढ़ियों से ऊपर चढ़ता चाँद किसी महंगे रेस्तरां की छप्पनभोग थाली जैसा दिख रहा था। प्यार भी कुछ पूनम के नए चाँद जैसा होता है – भावनाओं के छप्पनभोग में होता है ज़िन्दगी का खट्टा – मीठा स्वाद। नया नया चाँद, नया नया प्यार, छप्पनभोग थाली, उफ्फ ये हार्मोनल गश!

मैं चाँद के खूबसूरत क्रेटर्स देख ही रही थी कि एक और ख्याल आया – जो लोग चाँद की रोशनी को देखकर हैरान होते हैं, वो जानते ही नहीं कि चाँद खुद रोशन नहीं होता, वह सूरज की रोशनी को प्रतिबिंबित करता है- ठीक प्यार की तरह, जिसमें चमक है मेरी चमक से, प्यार में फूल तभी खिलते हैं जब मेरे जज्बातों की बारिश होती है, प्यार में सबकुछ अच्छा लगता है क्योंकि मैं खुश हूँ। मेरा प्यार मेरी आत्मा का प्रतिबिंब है।

चाँद चढ़ चुका है आसमान में। अब दिखाई नहीं दे रहा खिड़की से। पर देख रही थी चाँद को चढ़ते हुए और घटते हुए। प्यार को भी देखा है – चढ़ते, बढ़ते, घटते और डूब जाते हुए। 

अरे हाँ! प्यार इस मामले में भी चाँद के समान है कि वह भी चाँद की तरह मेरी कहानी का मेहमान है और कैलेंडर की तारीखों का हिसाब रखते हुए चला जाएगा और फिर आएगा नया चाँद। 

नींद खुल गई है। घर आ गया है। अलविदा बड़े चाँद!

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